बीसवीं शताब्दी के उत्तराद्र्व के अंतिम चैथाई भाग से लेकर इक्कीसवीं शतब्दी के आज तक की विशेषकर सूचना क्रांति, जैविकीय क्षेत्र के अनुसंधानों तथा इनके दबावों से उत्पन्न आर्थिक उदारीकरण का प्रभाव केवल बाजार पर ही नहीं पड़ा है, बल्कि उसने व्यक्ति की मूलभूत चेतना से लेकर सदियों तक जड़ जमाई हुई उसकी अत्यंत गहरी एवं बुनियादी धार्मिक अवधारणाओं तक को उलट दिया है। इस तथ्य का सबसे जीवंत … [Read more...]
ऊर्जा का आह्वान है नवरात्रि का पर्व
हमारे आदि पुरुष ‘मनु’ ने धर्म की परिभाषा दी है कि जो ‘‘धारण करने योग्य हो, वह धर्म होता है’’ क्या हम इस परिभाषा को नवरात्रि जैसे विशुद्ध धार्मिक विधान पर लागू कर सकते है? इसमें नौ राते आती हैं। इन दिनों माँ दुर्गा की आराधना की जाती है। व्रत रखा जाता है। यथासंभव पवित्र जीवन जीने की कोशिश की जाती है। तो इसमें धारण करने योग्य क्या है। … [Read more...]
आप भी बन सकते हैं राम
निश्चित तौर पर राम हमारे काम के है, और बहुत-बहुत काम के। किन्तु किस रूप में और किस तरह? यहाँ हमारे सामने दो रास्ते हैं, और यह हम पर है कि इन दो रास्तों में से हम अपने लिए कौन सा रास्ता चुनते हैं, और इसी रास्ते से सब कुछ बदल जायेगा। … [Read more...]
गज़ब का रंगरेज है होली
जैसे दीपावली का ख्याल आते ही जेहन में जलते हुए दीए झिलमिलाने लगते हैं, ठीक वैसे ही होली की याद कौंधते ही दिमाग के पटल पर रंगों के न जाने कितने इन्द्रधनुष बेतरतीब ढंग से पसर जाते हैं। होता तो यहाँ तक है दोस्तों कि जब कभी रंगों की दुकान के सामने से गुजरने का मौका मिलता है, स्मृति में छोटी-मोटी अस्थायी होली अपने आप मच जाती है। अच्छा ही है कि ऐसा होता है, अन्यथा सोचकर देखिए कि यदि … [Read more...]
स्वाद कहाँ है?
बहुत लोगों से पूछा मैंने, और उनसे खरीदकर लाया भी, लेकिन वैसा नीबू नहीं ला पाया, जैसा कि वह चाहता था। … [Read more...]
“हुस्न-ए-मल्लिका: मर्लिन मुनरो”
मैं समझता हूँ कि मुझे यह बताने की कतई जरूरत नहीं है कि मर्लिन मुनरो कौन थी। जी हाँ, आप ठीक सोच रहे हैं, गजब की सुन्दर वही फिल्म एक्ट्रेस, उठी हुई घेरेदार स्कर्ट वाले जिसके बड़े-बड़े पोस्टर्स आपको फूटपाथ से लेकर कला संग्रहालयों तक में मिल जायेंगे और … [Read more...]
नव वर्ष हो नयामय
संकट कब आता है? संकट आता ही तब है, जब दो चीजों में, दो बातों में, दो स्थितियों में, दो विचारों और दो व्यक्तित्यों आदि-आदि में या तो तालमेल नहीं बैठता, या यदि कभी बैठ रहा था, तो अब बैठना बंद हो गया है। तालमेल खत्म यानी कि संकट की शुरूआत। … [Read more...]
भगवान-एक जादूगर
भगवान यानी कि सच्ची-मुच्ची का एक जादूगर, एक ऐसा जादूगर, जो कुछ भी ऐसा कर सकता है, जैसा कि आमतौर पर होता नहीं है। उसकी डिक्शनरी में ‘असंम्भव’ नामक शब्द का अस्तित्व ही नहीं है। जब कभी मैं भगवान की इस जादूगर वाले चरित्र को लेकर भगवान कृष्ण के बारे में सोचता हूँ, तो असमंजस में पड़ जाता हूँ। … [Read more...]
जिन्दिगियाँ-“रेल का डिब्बा”
मुझे कभी-कभी लगता है, मानो कि हममें से ज्यादातर लोगों की जिन्दिगियाँ यहाँ तक कि 99.999% लोगों से भी अधिक की जिन्दगियां रेल का डिब्बा बनकर रह गई है। रेल का डिब्बा, यानी कि वह, जिसका अपना कुछ नहीं है, कुछ भी नहीं है। … [Read more...]
अंधे धृतराष्ट्र
आपकी तरह मैंने भी पढ़ा है कि धृतराष्ट्र अंधा था। सच में था या नहीं, न तो आप गारंटी दे सकते है, और न ही मैं दे सकता हूँ। लेकिन हम दोनों इस बात की गारंटी तो दे ही सकते है कि बुद्धि के लिहाज से वह सचमुच में अंधा था, फिर चाहे उसकी दोनों आँखें कितनी भी स्वस्थ क्यों न रही हों। … [Read more...]
लोगों की परेशानी
लोगों की एक बहुत बड़ी परेशानी है, खासकर उनकी, जिनके यहाँ दूसरे लोग काम करते हैं कि “लोग काम नहीं करना चाहते, चाहे उनके लिए कितना भी कुछ क्यों न कर दिया जाये।” इन लोगों की इस शिकायत को मैं सीधे-सीधे अस्वीकार कर सकूं, यह कूबत मुझमें नहीं है, क्योंकि वे गलत नहीं कह रहे होते हैं। … [Read more...]
अमिताभ बच्चन से मुलाकात
अमिताभ बच्चन, जी हाँ, उन्हीं एक्टर अमिताभ बच्चन जी से यह मेरी पहली मुलाकात नहीं थी। लेकिन इस मामले में यह पहली जरूर थी, कि इस बार मैं उनमें उनकी सफलता के सबसे बड़े रहस्य को पकड़ना चाहता था। उनके बारे में आपने बहुत कुछ पढ़ा होगा, देखा होगा, सुना भी होगा कि वे बहुत अनुशासित व्यक्ति हैं। … [Read more...]
अमेरिका का उदाहरण
“प्लीज, आप मुझे अमेरीका का उदाहरण मत दीजिये। धन के मामले में वह बड़ा हो सकता है। है ही। लेकिन रिलेशनशिप के मामले में नहीं। वहाँ के रिलेशनशिप के सेन्टर में लॉ है- मदर इन लॉ, ब्रदर इन लॉ आदि। जिस रिलेशन को लॉ बनाता है, उस रिलेशन को लॉ तोड़ भी सकता है। क्या हमारे यहाँ ऐसा है?” … [Read more...]
विजयादशमी के मायने
राम और रावण वस्तुतः हमारे जीवन में चेतना के दो अलग-अलग छोरों और स्तरों का प्रतिनिधित्व करते हैं, और दोनों छोर अपने-अपने चरम पर हैं। राम जहाँ चेतना की परम विशुद्ध अवस्था है, तो वहीं रावण चेतना की अत्यंत प्रदूषिण अवस्था। इस सच्चाई को “रामचरितमानस” के अब तक उपेक्षित किन्तु बहुत ही महत्वपूर्ण प्रसंग में देखा जा सकता है। … [Read more...]
एक ड्रायवर
“सर, कैसी लगी आपको यह। अच्छी लगी न। मैंने कहा था न कि यह आपको अच्छी लगेगी। अब मैं इसे हमेशा अपनी गाड़ी में ही रखता हूँ। जब भी कोई सवारी इसमें बैठती हैं, मैं उसे यह थमा देता हूँ कि साहब, आप इसे पलट लीजिये। रास्ता भी कट जायेगा, मजा भी आयेगा और सबसे बड़ी बात तो यह कि कितना कुछ जान जायेंगे आप ज़िंदगी के बारे में। सर, एक बार तो जब मैं किसी को चंडीगढ़ लेकर गया था, तब तो मैं उनसे इसे … [Read more...]
जो सरल हैं वही है महान
“पापा, ऐसी जगह पर आकर लगता है, कि सच में हम क्या हैं और कितने छोटे हैं।” मैंने कहा, “हां, ऐसी जगहों की देन केवल यही नहीं होती कि उसने तुमको दिया कितना है, बल्कि इससे भी कहीं अधिक यह होती है कि तुमने लिया क्या है। … [Read more...]
अपनी भाषा का जादू
“आप लोग मुझे किस लैंग्वेज में सुनना चाहेंगे, हिन्दी में या अंग्रेजी में?”, उनके इस प्रश्न के जवाब में जो उत्तर गूंजा, वह लगभग शोरगुल जैसा था, लेकिन ऐसा भी नहीं कि समझ में न आया हो कि कहा क्या जा रहा है। जब यह शोरगुल, जो लगभग एक मिनट तो चला ही होगा, थम गया, तो उस शांत माहौल में एकदम पीछे से एक गंभीर सी आवज उभरी, “जावेद साहब, आप उस जुबान में बोलिए- जो आपके दिल के सबसे करीब हो।” … [Read more...]
प्यारनामा
यदि सोच-विचार करना है, तो पहले कर लो। लेकिन प्यार करने के बाद सोच-विचार मत करो। तुम जिससे प्यार करते हो उसको प्यार करने से बेहतर है उससे प्यार करना जो तुमसे प्यार करता है। … [Read more...]
स्वर्ण-मृग प्रसंग (भाग-3)
मेरे प्रिय, मैं आपको पहले ही बता चुका हूँ कि श्रीराम न केवल अपनी ही चेतना को विशुद्ध रखना चाहते थे, बल्कि अपने साथ के लोगों की चेतना को भी विशुद्ध करना चाहते थे। फिर सीता तो उनकी अर्द्धांगिनी ही थी; एक ऐसी अर्द्धांगिनी, जिसे उन्होंने मन ही मन चाहा था और अपने शौर्य के द्वारा पाया था। उनकी चेतना को तो विशुद्ध करना ही था। … [Read more...]
स्वर्ण-मृग प्रसंग (भाग-2)
यहाँ प्रश्न यह है कि श्रीराम को यह बात कहने की जरूरत क्यों पड़ी। ऐसा तो नहीं था कि लक्ष्मण इतने नासमझ थे कि वे यह बात जानते नहीं थे। श्रीराम के साथ ही उन्होंने गुरू से शिक्षा पायी थी। श्रीराम के साथ ही वे विश्वामित्र के साथ राक्षसों का वध करने गये थे। अभी भी वे तेरह वर्षों से श्रीराम के साथ ही रह रहे थे। तो क्या श्रीराम के व्यक्तित्व और विचारों को अभी तक लक्ष्मण आत्मसात नहीं कर … [Read more...]
स्वर्ण-मृग प्रसंग (भाग-1)
यह ‘रामचरितमानस’ का बहुत ही खूबसूरत और रोचक प्रसंग है। प्रसंग कुछ यूँ है कि राम, सीता और लक्ष्मण अपनी कुटिया में बैठे हुए हैं और उसी समय एक स्वर्ण मृग वहाँ आता है। सीता उस मृग को देखकर मोहित हो जाती हैं और अपने पति श्रीराम से अनुरोध करती हैं कि मुझे उसकी खाल चाहिए। श्रीराम कुछ नहीं कहते और सीता को लक्ष्मण की रखवाली में सौंपकर, लक्ष्मण को कुछ आवश्यक निर्देश देकर मृग के पीछे चले … [Read more...]
दायित्व निभाओ
श्रीराम ने अपने न्यूनतम प्रतिरोध के सिद्धांत को एक विशाल कैनवास पर चित्रित किया है। इस विशाल कैनवास पर हम उन्हें अपने दायित्वों का पूरी तरह से निर्वाह करते हुए पाते हैं। राम को आप कहीं भी अपने दायित्वों से बचते हुए नहीं पायेंग, यहाँ तक कि दूसरों के लिये भी। … [Read more...]
लक्ष्मण को क्यों कंट्रोल नहीं करते थे राम?
राम संतुलन के सिद्धांत को भी अच्छी तरह समझते थे। वे स्वयं तो शालीन थे, लेकिन क्या शेष जगत भी शालीन था? यदि नहीं, तो इस अशालीन दुनिया का मुकाबला राम करेंगे कैसे। भले लोग अगर एकदम भले ही बने रहे, तो क्या लोग जीने देंगे इन भले लोगों को। नोंच-नोंचकर खा जाएँगे वे उन्हें। … [Read more...]
राम का पत्नी प्रेम
राम ने फूल चुने और अपने हाथों से उन फूलों के आभूषण बनाए। इसके बाद वे बैठ गए एक सुन्दर चमकीली चट्टान के ऊपर और फिर वहाँ राम ने पूरे आदर के साथ वे आभूषण सीता का पहनाए। अब आप यहाँ देखिए राम की वह अद्भुत संवेदनशीलता, जो उन्हें ईश्वरत्व के निकट ले जाती है। आभूषण बनाकर उन्होंने वे गहने सीताजी को सीधे थमा नहीं दिए कि ‘लो सीते, तुम इन्हें पहन लो।’ बल्कि किया यह कि उन्होंने वे … [Read more...]
गुस्साए हुए परशुराम
पगला गए हैं गुस्से में परशुराम। जब गुस्सा ज्यादा होता है, तो आदमी कभी अपना संतुलन बनाए रख ही नहीं पाता, फिर चाहे वह कितना भी क्यूँ न कहे कि ‘मैं ठीक हूँ, आई एम ओके’। वह ठीक नहीं रहता। वह ओके नहीं रहता। केवल कहता भर है। परशुराम जी गुस्से में हैं। धमक आए हैं स्वयंवर स्थल पर। जनक जी ने उन्हें बता दिया कि यह क्यूँ हुआ। बता दिया कि सीता का स्वयंवर रचा गया था। इस पर परशुराम जी जनक से … [Read more...]
राम में प्रेम की प्रेरणा
राम के लिए सीता के प्रति प्रेम का भाव किस तरह से प्रेरणा का काम करता है, इस बारे में हमें एक अत्यंत रोचक और रोमांचक प्रसंग मिलता है। इससे पहले कि राम धनुष के पास पहुँचें, राम ने सीता की ओर देखा। फिर धनुष की ओर देखा। पहले सीता फिर धनुष, न कि पहले धनुष और फिर सीता। यह करके उन्होंने सीता के पास संदेश भेज दिया कि प्रथम तो तुम हो, उद्देश्य तो तुम हो। धनुष तो केवल तुम तक पहुँचने का … [Read more...]
राम का लघु वन गमन
सच तो यह है कि विश्वामित्र के साथ राम का जाना एक प्रकार से वन गमन ही था, फर्क केवल इतना था कि यह लघु था और इस वन गमन में कोई नारी पात्र नहीं थी, न तो वन भेजने के मामले में (कैकेयी) और न ही साथ जाने के मामले में (सीता)। दशरथ तो विश्वामित्र जी के साथ भी भेजना नहीं चाहते थे। लेकिन थोड़े दिनों की बात सोचकर, साथ ही विश्वामित्र से थोड़ा डरकर उन्होंने ज्यादा आनाकानी किए बिना … [Read more...]
राम को किसने दिया वनवास?
जब विश्वामित्र् आकर दशरथ से राम और लक्ष्मण को माँगते हैं, तो पिता के कहने पर राम चल देते हैं। यह भविष्य् के चौदह वर्ष के वनवास की उनकी एक प्रकार से पूर्व- तैयारी थी, उसका पूर्वाभ्यास था। ठीक है। पिता ने कहा। राम ने इसके खिलाफ कुछ नहीं कहा। पिता की आज्ञा मानी और चुपचाप चल दिए। लेकिन बाद में वे चौदह वर्ष के लिए वनवास क्यों गए? क्या पिता ने इसके लिए भी राम से कहा था? … [Read more...]
भ्रष्टाचार पर समुद्र मंथन की जरूरत
भारत में भ्रष्टाचार के खिलाफ होने वाले तथाकथित दो जन आन्दोलन खत्म हो गये हैं। आन्दोलन के दौरान बेहद उत्तेजित एवं उल्लसित जनभावनायें आज उतनी उत्तेजित दिखाई नहीं दे रही हैं। फिलहाल इस मुद्दे को लेकर कुछ प्रश्न दिमाग में कुलबुला रहे हैं, जिनके उत्तर मिलने ही चाहिए। … [Read more...]
मरना भी महंगा है जहाँ
अमेरिका के लास एंजलिस में हालीवुड के नामी-गिरामी एक्टर और एक्ट्रेस ही नहीं रहते, रामजी भाई पटेल भी रहते हैं। मझोले कद के रामजी भाई पटेल- सिर घुटा हुआ, गाल थोड़े से उभरे हुए और चमकती हुई चौकन्नी आँखें। मुझे उनकी बातें सुनने में म्यूजिक जैसा सुख मिलता था, … [Read more...]
धैर्य का महत्व
हमारे लोग धैर्य के महत्त्व को, इसके जादुई करिश्मे को अच्छे से जानते थे। वे प्रकृति के इस सिद्धान्त से अपने जीवन के सिद्धान्त निकालते थे कि जो कुछ भी होता है, वह समय के अनुकुल ही होता है। गीदड़ की जल्दबाजी में कभी बेर नहीं पकते। और यदि गीदड़ जल्दबाजी करेगा, तो निश्चित रूप से किसी न किसी के हाथों मारा जायेगा। … [Read more...]
नेतृत्त्व करें
नेतृत्त्व करें, अनुकरण नहीं। ज्यादातर लोग अनुकरण करना चाहते हैं, क्योंकि ऐसा करना सबसे आसान होता है। इसके लिए न तो सोचना पड़ता है और न ही किसी तरह की कोई जहमत उठानी पड़ती है। … [Read more...]
आध्यात्मिकता और आन्तरिक सन्तुलन
सच पूछिये तो आध्यात्म और कुछ भी नहीं, बल्कि आपका अपना ही आन्तरिक संतुलन है। मैं यह मानता हूँ, और मैंने इसे पूरी संवेदनशीलता के साथ बहुत गहराई से महसूस भी किया है कि जब हमारा आन्तरिक संतुलन कायम रहता है, … [Read more...]
जीवन में सुनने का महत्व
मित्रों, मेरी सलाह मानिये और अपनी जिन्दगी में सुनने को ज्यादा महत्व देना शुरू कर दीजिये। आप देखेंगे कि कैसे ज्ञान के स्तर पर, एकाग्रता के स्तर पर कम्युनिकेशन स्किल के स्तर पर और कुल-मिलाकर यह कि आपके अपने व्यक्तित्व के स्तर पर कितने अधिक सकारात्मक परिवर्तन होने शुरू हो जायेंगे … [Read more...]
आस्था को मजबूत करें
हमारी आस्था हमारे जीवन की सबसे बड़ी दौलत होती है। हममें यह आस्था पैदा हो, वह आस्था बनी रहे और दिन-प्रतिदिन मजबूत होती जाये, इसके लिए हमें इन कुछ बातों पर ध्यान देना चाहिए - … [Read more...]
सफलता का अर्थ
मेरे प्रिय युवा साथियों, यदि मैं आपसे सफलता की परिभाषा पूछूँ, तो मैं जानता हूँ कि आपका उत्तर क्या होगा। आपका उत्तर यही होगा कि जिस उद्देष्य में हम लगे हुए है, उस उद्देष्य को पा लेना ही सफल हो जाना है। … [Read more...]
आशीर्वाद का विज्ञान
चीन के दार्शनिक लाओत्से ने कहा था कि ‘‘जो यह कहता है कि मैं कुछ नहीं जानता, वही सचमुच में जानता है।’’ … [Read more...]
सिंपल लिविंग के मायने
“मैंने अपने पिता को अपनी कमाई से होंडा की सिविक कार खरीदकर दी, पर वे आज भी लोकल बस और ट्रेन से ही सफर करते हैं । … [Read more...]
बिन साहस सब सून
अधिक तर्क-वितर्क करने यानी कि किसी भी मुद्दे पर बहुत अधिक सोच-विचार करने वालों में भी साहस के गुण की कमी देखी गई है। यहाँ मेरा आशय यह नहीं है कि जो कुछ आप करने जा रहे हैं, उसके बारे में सोच-विचार करें ही नहीं। करें, लेकिन एक सीमा तक यदि आप एक सीमा से आगे बढ़कर सोच-विचार कर रहे हैं, तो यह आपके इस झुकाव को दिखाता है कि आप साहस नहीं कर रहे हैं। … [Read more...]
कौन है राजनीति का अन्ना हजारे?
यदि हम “राजनीति का अन्ना हजारे” ढूँढें, तो निगाह किसकी तरफ उठेगी? यहाँ अन्ना हजारे का मतलब है भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम छेड़ने वाला एक ऐसा राष्ट्रीय व्यक्तित्व, जिसका अपना दामन भी पाक-साफ हो। … [Read more...]
ऊर्जा का उत्सव: नवरात्री
हांलाकि हमारे यहाँ आम लोगों के बीच दो ही नवरात्री के दो ही उत्सव अधिक प्रसिद्ध हैं, लेकिन हैं ये कुल पाँच। एक नवरात्री सितम्बर-अक्टूवर माह में आती है, और दूसरी मार्च-अप्रैल में। ठंड के मौसम की शुरूआत में मनाये जाने वाली नवरात्री को, जहाँ महानवरात्री कहा जाता है, वही … [Read more...]
एक गाँव का शोक गीत
लगभग बीस सालों के बाद गया था मैं अपने गाँव चन्द्रमेढ़ा, जो छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले के मुख्यालय अंबिकापुर से मात्र पचास किलोमीटर की दूरी पर है। जिस कच्चे स्कूल में मैं पढ़ता था, वहाँ उस दिन भी बच्चे पढ़ रहे थे, किन्तु उस समय का जवान स्कूल आज दमें के रोग से ग्रस्त बूढ़ा स्कूल नजर आ रहा था। … [Read more...]
प्रशासनिक सेवाओं से खारिज किया गया भारत…
इंडियन सिविल सर्विसेस यानि कि भारतीय प्रशासन की रीढ़ की हड्डी, जिसके जरिए न केवल जिला स्तर पर प्रशासन को सम्हालने वाले आय.ए.एस. और आय.पी.एस. अफसरों की ही भर्ती होती है … [Read more...]
स्वतंत्रता और आध्यात्म
स्वतंत्रता। यह बहुत खूबसूरत, बहुत जोरदार, बहुत वजनी, बहुत प्यारा और अद्भुत शक्ति से भरा हुआ शब्द है। सामान्य तौर पर हम सब स्वतंत्रता का राजनैतिक अर्थ ही लगाते हैं। राजनीतिशास्त्र में इसे पढ़ते हैं और देश की आजादी के रूप में इसका उपयोग करते हैं। … [Read more...]
दानदाताओं का अर्थशास्त्र
रतन टाटा के बाद अब अजीम प्रेमजी। रतन टाटा ने पांच करोड़ डालर हावर्ड बिजनेस स्कूल को दिये, तो विप्रो के अज़ीम प्रेमजी ने अपनी कम्पनी के 8.37 प्रतिशत शेयर अपने ट्रस्ट को देने की घोषणा कर दी। 8.37 प्रतिशत शेयर यानी कि की 8846 करोड़ रुपये। लगता है कि भारत के उद्योगपतियों ने वारेन बफेट और बिल गेट्स की आवाज को सुनकर उस पर कार्यवाही करना शुरू कर दिया है। हम सब उम्मीद करते हैं कि बहुत … [Read more...]
ऊर्जामय है यह जगत
आप अभी, जी हाँ अभी तुरंत अपनी दोनों हथेलियों को तेज-तेज रगड़िये, और बताइये कि क्या हुआ। आपकी हथेलियों में गर्मी आ गई होगी। अब मेरा प्रष्न यह है कि यह गर्मी, जिसने आपकी ठंडी-ठंडी हथेलियों को कुनकुनेपन में बदल दिया, वह क्या कहीं बाहर से आई? आपका उत्तर होगा, ‘नहीं’ वह बाहर से नहीं आई है। “तो फिर कहाँ से आई? … [Read more...]
एक रूप यह भी…
8 सितम्बर सन् 2008 और इसके ठीक लगभग सवा छः महिने बाद 17 मार्च सन् 2009 की तारीख। ये दोनों तारीखें अलग से न तो खेल मंत्रालय के रोजनामने में दर्ज हैं, और न ही भारत में बवाल मचाकर पिछले साल सम्पन्न हुए कामनवेल्थ गेम्स के इतिहास में। लेकिन हैं ये दोनों तिथियाँ बेहद महत्वपूर्ण। भले ही इनकी ओर अब तक किसी ने अलग से ध्यान नहीं दिया। मुझे नहीं लगता कि किसी की कुर्बानी की तिथि से भी … [Read more...]
भागमभाग जिन्दगी
भागमभाग की जिन्दगी ने आज हर एक आदमी को परेशान कर दिया है। इस भागमभाग में वह यहाँ तक भूल गया है कि वह भाग किसके लिए रहा है। असल में हो यह रहा है कि इस भागमभाग के कारण हम अपने लोगों को ही भूलते जा रहे हैं। हम अपने ही लोगों के बीच में एक ऐसी अदृश्य दीवार चिनते जा रहे हैं, जो दिखाई तो नहीं देती, लेकिन हमें विभाजित करने का अपना काम तो करती ही रहती है। … [Read more...]
आस्था का जीवन जीयें
हम सभी की जिन्दगियों में इस बात से बहुत फर्क पड़ जाता है कि हम आस्था का जीवन जी रहे है, या आशंकाओं का जीवन जी रहे है। आशंकायें अनगिनत होती हैं। एक से छुटकारा मिलता है, तो दूसरी आ दबोचती है। लेकिन यदि हमने एक भी आस्था को पकड़ लिया, और उसे पकड़े रहे, तो बजाय इसके कि हम जिन्दगी के कब्जे में रहें, जिन्दगी हमारे कब्जे में आ जाती है। और मित्रों, सारा फर्क पड़ता ही इस बात से है कि कौन … [Read more...]
असफल होना सीखें
आज का मेरा यह विषय आपको बहुत उटपटाँग ही नहीं बल्कि एकदम गलत भी लगेगा। गलत इसलिए लगेगा कि अभी तक तो आपको यही बताया जाता रहा है कि आप सफल कैसे होंगे। आखिर हर कोई सफल ही तो होना चहता है। मैं आपको बताने जा रहा हूँ कि असफल कैसे हुआ जाता है। भला यह भी कोई बात हुई कि असफल होना सीखें। लेकिन जी हाँ, थोड़ा धैर्य रखें। मुझ पर झुँझलायें नहीं। पहले मुझे अपनी बात कहने दें। इसके बाद आपका … [Read more...]
अपनी विलक्षणता को खोजें
कहा जाता है कि इस धरती को बने हुए लगभग 6 अरब साल हो गये हैं, और इस पर जीव की उत्पत्ति को लगभग 4–5 करोड़ साल। यह ब्रमाण्ड इतना बड़ा है कि अभी तक इसका ओर–छोर ही पता नहीं लग पाया है। लेकिन हमें जितना कुछ भी पता है, उसके आधार पर मैं आपसे पुछूं कि प्रकृति की सबसे उत्कृष्ट रचना क्या है? तो आपका उत्तर क्या होगा। … [Read more...]
Master Your Mind
This book by Dr. Vijay Agrawal is a mirror wherein every reader can see the reflection of his inner self and outer deeds. You can get to know your true ‘self ’. With the help of your true ‘self ’ and with control over your 'mind', you can achieve all that you desire. … [Read more...]
काश! को अपने जीवन में स्थान न दें
चूक छोटी-सी होती है और एक बड़ी चीज होते-होते रह जाती है। ये जिंदगी के ऐसे और इतने बड़े हादसे होते हैं, जो दिखाई तो नहीं देते, लेकिन इन्हें जो कुछ भी तहस-नहस करना होता है, कर जाते हैं। दतिया के एक नौजवान को रणजीत क्रिकेट संघ के तत्कालीन अध्यक्ष स्व. माधवराव सिंधिया ने बुलवाया। उससे चूक हो गई। वह नहीं गया। इसके साथ ही उसका क्रिकेट भी हमेशा-हमेशा के लिए चला गया। हम क्यों चूक जाते … [Read more...]
‘जिन्दगी एक सफर है सुहाना, यहाँ कल क्या होगा किसने जाना’
आपने ‘अंदाज’ फिल्म का यह गीत कभी-न-कभी जरूर सुना होगा कि ‘जिन्दगी एक सफर है सुहाना, यहाँ कल क्या होगा किसने जाना।’ यह बहुत ही प्यारा और बहुत ही फिलासॉफीकल गीत है। इसमें हमारे जीवन के बहुत महत्त्वपूर्ण संदेशों को पिरोया गया है। इसकी पहली ही लाईन में दो बहुत बड़ी बातें कही गई हैं। पहली बात तो यह कि जिन्दगी का जो सफर है, वह सुहाना होता है, डरावना नहीं। जिन्दगी जो भी है और जैसी भी … [Read more...]
News clips
Dr. Vijay Agrawal in the News. … [Read more...]
वैश्वीकरण के दौर में धन की भारतीय अवधारणा
पिछले लगभग सात सालों से धन से जुड़ा यह जुमला बहुत लोकप्रिय हुआ है कि ‘‘कसम से रूपया खुदा तो नहीं है, लेकिन खुदा से कम भी नहीं है।’’ इसकी लोकप्रियता केवल इसके कहे जाने के अंदाज में ही नहीं है, बल्कि इसमें भी है कि इसी दौरान भारतीय जनचेतना में भी एक जबर्दस्त बदलाव आया है। यह बदलाव खुले जीवन-मूल्यों के स्वीकार किये जाने से कहीं अधिक धन को खुदा मान लेने में है। ऐसा नहीं है कि … [Read more...]
धन से पायें मोक्ष!
यह एक अच्छी बात है कि पिछले लगभग पन्द्रह सालों से भारतीय समाज में धनवान लोगों के प्रति लोगों की धारणा में बदलाव आया है और यह बदलाव अच्छी ही दिशा में है। इसमें कोई दो राय नहीं कि दार्शनिक कार्ल माक्र्स द्वारा स्थापित माक्र्सवादी सिद्धान्तों से प्रभावित लोगों ने पूँजी की जितनी तीखी आलोचना की, उतनी किसी और ने नहीं। शायद यह एक बहुत बड़ा कारण रहा कि इसके प्रभाव से भारतीय जनमानस हर … [Read more...]
जिंदगी के रास्ते कभी खत्म नहीं होते!
कुछ विचित्र सी खबरें पढ़ने को मिलती हैं। खबर यह होती है कि अमूक विद्यार्थी ने आत्महत्या कर ली, क्योंकि उसे अच्छी अँगरेजी नहीं आती थी। यह भी खबर पढ़ने को मिलती है कि उसने आत्महत्या कर ली, क्योंकि उसकी प्रेमिका ने उसे ठुकरा दिया या प्रेमी से उसकी शादी नहीं हो सकी। यह पढ़कर न केवल गहरा दुःख होता है, बल्कि धक्का सा पहुँचता है। … [Read more...]