लोगों की एक बहुत बड़ी परेशानी है, खासकर उनकी, जिनके यहाँ दूसरे लोग काम करते हैं कि “लोग काम नहीं करना चाहते, चाहे उनके लिए कितना भी कुछ क्यों न कर दिया जाये।” इन लोगों की इस शिकायत को मैं सीधे-सीधे अस्वीकार कर सकूं, यह कूबत मुझमें नहीं है, क्योंकि वे गलत नहीं कह रहे होते हैं।
तो फिर क्या हम यही मानकर चलें कि यह सब यूं ही चलता रहेगा, अनंतकाल तक? राहत देने वाली बात यह है कि यह यूं ही नहीं चलता रहेगा। हाँ, यह जरूर है कि अपने आप कुछ नहीं बदलेगा। कुछ करना होगा हमें इसे दुरुस्त करने के लिए। उसी एक ‘करने’ की चर्चा मैं आज आपसे करने जा रहा हूँ।
तो यह ‘करना’ क्या है? हम अपने एम्पलाई को सैलेरी देते हैं। यह उसका अधिकार है। इसलिए वेतन देकर कोई एहसान नहीं करते हैं। हम उसे बोनस देते हैं। यह हम उसे देते नहीं है, बल्कि वे अपनी मेहनत और अपनी क्षमता से लेते हैं। यही बात वेतन पर भी लागू होती है कि हम उसे देते नहीं हैं, बल्कि वे लेते हैं। हम कभी-कभी खुश होकर उन्हें छोटा-मोटा इनाम दे देते हैं। यह भी हम तब करते हैं, जब वह हमें खुश कर देता है, अपने किसी काम या व्यवहार के द्वारा। तो क्या आपको लगता है कि यह सब करके हमने उसके लिए कुछ विशेष किया है? नहीं न।
तो अब मैं आता हूँ उस बात पर, जिसे करके हम उन पर फतह हासिल कर सकते हैं, क्योंकि तब वे खुद को हमसे जुड़ा हुआ महसूस करने लगते हैं। यह बात है, यह काम है, उनके प्रति ‘कन्सर्न’ शो करने का, चिन्ता व्यक्त करने का। आप उनसे पूछें कि ‘तुम्हारे घर में सब कैसे हैं?’ आप उनसे पूछें कि ‘तुम्हारे कितने बच्चे हैं, और वे क्या-क्या कर रहे हैं?’ उनसे पूछें कि ‘तुम्हें कोई तकलीफ तो नहीं है और यदि कभी कुछ हो, तो मुझे बताने में संकोच मत करना।’ इस तरह के कई-कई प्रश्नों से, उसके कंधे पर हाथ रखकर आप उसके मन में विश्वास का वह बीज बो सकते हैं कि “मालिक को मेरी कितनी चिंता रहती है।” बस, उसके मन का यही विश्वास उसे आपसे इतने घनिष्ठ रूप से जोड़ देगा कि आपके काम को वह अपना काम समझने लगेगा, और ऐसा होते ही काम बन जायेगा। यदि यकीन न हो, तो एक बार करके जरूर देखें।
लोगों की एक बहुत बड़ी परेशानी है, खासकर उनकी, जिनके यहाँ दूसरे लोग काम करते हैं कि “लोग काम नहीं करना चाहते, चाहे उनके लिए कितना भी कुछ क्यों न कर दिया जाये।” इन लोगों की इस शिकायत को मैं सीधे-सीधे अस्वीकार कर सकूं, यह कूबत मुझमें नहीं है, क्योंकि वे गलत नहीं कह रहे होते हैं।
तो फिर क्या हम यही मानकर चलें कि यह सब यूं ही चलता रहेगा, अनंतकाल तक? राहत देने वाली बात यह है कि यह यूं ही नहीं चलता रहेगा। हाँ, यह जरूर है कि अपने आप कुछ नहीं बदलेगा। कुछ करना होगा हमें इसे दुरुस्त करने के लिए। उसी एक ‘करने’ की चर्चा मैं आज आपसे करने जा रहा हूँ।
तो यह ‘करना’ क्या है? हम अपने एम्पलाई को सैलेरी देते हैं। यह उसका अधिकार है। इसलिए वेतन देकर कोई एहसान नहीं करते हैं। हम उसे बोनस देते हैं। यह हम उसे देते नहीं है, बल्कि वे अपनी मेहनत और अपनी क्षमता से लेते हैं। यही बात वेतन पर भी लागू होती है कि हम उसे देते नहीं हैं, बल्कि वे लेते हैं। हम कभी-कभी खुश होकर उन्हें छोटा-मोटा इनाम दे देते हैं। यह भी हम तब करते हैं, जब वह हमें खुश कर देता है, अपने किसी काम या व्यवहार के द्वारा। तो क्या आपको लगता है कि यह सब करके हमने उसके लिए कुछ विशेष किया है? नहीं न।
तो अब मैं आता हूँ उस बात पर, जिसे करके हम उन पर फतह हासिल कर सकते हैं, क्योंकि तब वे खुद को हमसे जुड़ा हुआ महसूस करने लगते हैं। यह बात है, यह काम है, उनके प्रति ‘कन्सर्न’ शो करने का, चिन्ता व्यक्त करने का। आप उनसे पूछें कि ‘तुम्हारे घर में सब कैसे हैं?’ आप उनसे पूछें कि ‘तुम्हारे कितने बच्चे हैं, और वे क्या-क्या कर रहे हैं?’ उनसे पूछें कि ‘तुम्हें कोई तकलीफ तो नहीं है और यदि कभी कुछ हो, तो मुझे बताने में संकोच मत करना।’ इस तरह के कई-कई प्रश्नों से, उसके कंधे पर हाथ रखकर आप उसके मन में विश्वास का वह बीज बो सकते हैं कि “मालिक को मेरी कितनी चिंता रहती है।” बस, उसके मन का यही विश्वास उसे आपसे इतने घनिष्ठ रूप से जोड़ देगा कि आपके काम को वह अपना काम समझने लगेगा, और ऐसा होते ही काम बन जायेगा। यदि यकीन न हो, तो एक बार करके जरूर देखें।
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