राम ने फूल चुने और अपने हाथों से उन फूलों के आभूषण बनाए। इसके बाद वे बैठ गए एक सुन्दर चमकीली चट्टान के ऊपर और फिर वहाँ राम ने पूरे आदर के साथ वे आभूषण सीता का पहनाए। अब आप यहाँ देखिए राम की वह अद्भुत संवेदनशीलता, जो उन्हें ईश्वरत्व के निकट ले जाती है। आभूषण बनाकर उन्होंने वे गहने सीताजी को सीधे थमा नहीं दिए कि ‘लो सीते, तुम इन्हें पहन लो।’ बल्कि किया यह कि उन्होंने वे गहने अपने हाथों से सीता को पहनाए भी। बनाया भी और पहनाया भी। इसमें एक बड़ी बात यह भी है कि सीता का यह श्रृंगार उन्होंने प्रकृति के खुले वातावरण में एक चमकीली सुन्दर चट्टान पर किया। सबके सामने किया उन्होंने सीता का फूलों से श्रृंगार। कोई संकोच नहीं, कोई लज्जा नहीं, कोई दुराव-छिपाव नहीं। यह सब तो तब हो, जब आप कोई गलत काम कर रहे हों। अपनी प्रियतमा का श्रृंगार करना गलत कैसे हो सकता है।
पुराने ज़माने के लोगों को, घोर नौतिकतावादी लोगों को मेरी यह व्याख्या आसानी से पचेगी नहीं। वैसे सच बताऊँ तो तुलसीदास जी भी इस तरह के प्रसंगों को आसानी से पचा नहीं पाते थे। शायद उनके मन में यह डर बैठा हुआ था कि यदि उन्होंने ऐसे प्रसंगों में ढील ले ली, तो राम के चरित्र पर कृष्ण हावी न हो जाएँ और वे कृष्ण को तरजीह देते नहीं थे। इसलिए ऐसे वर्णनों के न केवल विस्तार में जाने से ही उन्होंने परहेज कर लिया था, बल्कि बहुत मर्यादा और संकेत के साथ वे अपनी बात कहते थे।
इस वर्णन में एक अन्य शब्द बहुत वजन का है और वह शब्द है ‘सादर’ यानी कि आदर के साथ। देखा न आपने तुलसी की नैतिक चेतना को। बात श्रृंगार की हो रही है। हृदय में श्रृंगारिक भावनाएँ हैं। लेकिन यह कहने की बजाय कि ‘प्रेम के साथ’ कवि कहते हैं-‘आदर के साथ’ । किन्तु कवि के पक्ष में यहाँ एक ज़ोरदार तर्क है। तर्क यह है कि प्रेम सार्वजनिक प्रदर्शन की वस्तु नहीं होती कि बार-बार ‘डार्लिंग’ कह रहे हैं कि बार-बार हाथ को पकड़ रहे हैं। यह तो शुद्धतः अनुभव करने का भाव है। यदि स्थान सार्वजनिक है, तो अपने प्रिय के प्रति अपने प्रेम के प्रदर्शन का सर्वाधिक शिष्ट और प्रभावशाली तरीका उसे सम्मान देना ही हो सकता है। यहाँ राम पति-पत्नी के उस उदात्त संबंध का उदाहरण पेश कर रहे हैं, जिसे अपनाकर दम्पत्ति अपने घरेलू कलहों से छुटकारा पा सकते हैं, तूँ-तूँ, मैं-मैं से बच सकते हैं।
ब्लॉग में प्रस्तुत अंश डॉ. विजय अग्रवाल की जल्द ही आने वाली पुस्तक “आप भी बन सकते हैं राम” में से लिया गया है।