भागमभाग की जिन्दगी ने आज हर एक आदमी को परेशान कर दिया है। इस भागमभाग में वह यहाँ तक भूल गया है कि वह भाग किसके लिए रहा है।
असल में हो यह रहा है कि इस भागमभाग के कारण हम अपने लोगों को ही भूलते जा रहे हैं। हम अपने ही लोगों के बीच में एक ऐसी अदृश्य दीवार चिनते जा रहे हैं, जो दिखाई तो नहीं देती, लेकिन हमें विभाजित करने का अपना काम तो करती ही रहती है। भागमभाग करने वाले लोग इस गलतफहमी के शिकार रहते हैं कि उसकी उपलब्धियाँ, उसकी सम्पत्ति और उसकी ख्याति इन दीवारों को जोड़ देगी और उसके अपने लोग उससे जुड़ जाएँगे।
जबकि जिन्दगी की सच्चाई कुछ और ही होती है। जिन्दगी की सच्चाई को धन और प्रसिद्धि से कुछ लेना देना नहीं होता। यह तो भावनाओं की बात होती है। तो आइए, इस बात को हम कुछ सच्ची घटनाओं से जानें-
अपनी जिन्दगी के आखिरी दौर में अल्फ्रेड अकेले ही रहते थे। इस दौरान वे अपनी काउंटेस बर्था किन्सकी को चाहने लगे थे। लेकिन बर्था किसी और को चाहती थी। जब बर्था को इस बात का एहसास हुआ कि अल्फ्रेड उसे चाहने लगे हैं, तो एक दिन वह अल्फ्रेड को बिना कुछ बताए ही चली गई, जाहिर है, उसके पास, जिसे वह चाहती थी।
‘थोक आविष्कारक’ थामस अल्वा एडीहसन की पहली पत्नी घुट-घुटकर मर गई और दूसरी पत्नी तथा बच्चों से भी उनकी बिल्कुल नहीं बनी। उनके अंतिम दिन बहुत अकेलेपन के दिन थे और उनकी द्वितीय पत्नी मीना ने, जो उम्र में उनसे काफी छोटी थी, एडीसन की मृत्यु के चार साल बाद उस स्टील निर्माता से शादी कर ली, जो उनके बचपन का साथी था।
आइंस्टीन को उनकी पहली पत्नी उस समय छोड़कर चली गई, जब आइंस्टीन विश्व प्रसिद्ध हो चुके थे। नेपालियन बोनापार्ट ने अपने से बड़ी उम्र की विवाहिता जोसेफीन को चाहा, उससे शादी की और बाद में जब वह सम्राट बन गया, तो जोसेफीन उससे अलग रहने लगी। महान चित्रकार पिकासो जीते-जी मिथक बन जाने के बाद भी कभी भी अपनी पत्नियों के चहेते नहीं रह सके।
और लगभग यही कहानी फिल्म ‘निकाह’ की भी है कि उसका नायक अपनी पत्नी को अधिक से अधिक सुख पहुँचाने और खुशियोँ देने की इच्छा से अधिक से अधिक धन कमाने में मशगूल हो जाता है और नतीजे में पत्नी से दूर।
क्या यह कहानी केवल ‘निकाह’ के नायक की ही मनगढ़ंत कहानी है? यदि यह मनगढ़ंत है, तो अल्फ्रेड नोबेल, एडिसन, आइंस्टीन, नेपोलियन और पिकासो की घटनाएँ तो मनगढ़ंत नहीं हैं। क्या इस कहानी और इन सच्ची कथाओं में कहीं-न-कहीं, हम सभी थोड़े-बहुत मौजूद नहीं हैं? मुझे लगता है कि हम सभी को अपने आपको टटोलकर इस कड़वी सच्चाई का पता लगाने के लिए कुछ समय जरूर देना चाहिए, ताकि हम दूसरों की जिंदगी में की गई गलतियों को अपनी जिंदगी में दुहराने से अपने आपको बचा सकें।
मेरी यह बात हम सभी की जिंदगियों के उस अहम् सवाल से जुड़ी हुई है कि आखिर हमारे अपने लोग, निहायत ही अपने लोग, जिनमें माता-पिता, पत्नी और बच्चे आते हैं, हमसे असलियत में चाहते क्या हैं? नोबेल के पास दौलत और शोहरत दोनों थीं। लेकिन उसके यहाँ काम करने वाली बाई उनको ठुकराकर चलती बनी। आइंस्टीन से मिलने को लोग तरसते थे, लेकिन दुर्भाग्य से उन्हीं की पत्नी ने उनके साथ रहने से इंकार कर दिया। पिकासो के पास एक कलाकार की संवेदना थी, लेकिन शायद वह अपनी पत्नी के प्रति नहीं थी। फिर नेपालियन तो फ्रांस का सम्राट ही था-ताकतवर था, बुद्धिमान था, साहसी था, धनवान था, और स्मार्ट भी था। इन सबके होने के बावजूद जोसेफीन ने उसके साथ रहने से इंकार कर दिया।
तो फिर यहाँ यह एक सवाल मन में उठता है कि ‘‘आखिर उन सभी को चाहिए क्या था?’’ हममें से ज्यादा लोग उनके चाहने को लेकर गलतफहमियों के शिकार रहते हैं। इससे पहले जिन बातों का जिक्र आया है, उनसे चाहने की शुरूआत तो हो सकती है, लेकिन ये चाहने वालों को ताजिंदगी खुशी देने और उन्हें मन से बाँधे रखने वाले साबित नहीं हो सकते।
मन की तो बात ही कुछ और होती है। उसका पद, प्रतिष्ठा, धन और बल से कुछ लेना-देना नहीं होता। केवल इस बात के एहसास के सामने कि ‘‘वे मेरा कितना ध्यान रखते हैं’’, वे बड़े से बड़े वैभव को उसी तरह न्यौछावर कर सकती हैं, जैसे कि कवि रसखान गोकुल में रहने के लिए जिंदगी के कितने भी बड़े सुख को छोड़ सकते थे। जी हाँ, केवल इस छोटे से एहसास को पाने के लिए, एक सच्चे एहसास को पाने के लिए कि ‘‘वे मेरी केयर करते हैं।’’ बस, इतना ही, छोटा सा, किन्तु शायद सबसे बड़ा।