संकट कब आता है? संकट आता ही तब है, जब दो चीजों में, दो बातों में, दो स्थितियों में, दो विचारों और दो व्यक्तित्यों आदि-आदि में या तो तालमेल नहीं बैठता, या यदि कभी बैठ रहा था, तो अब बैठना बंद हो गया है। तालमेल खत्म यानी कि संकट की शुरूआत। यह बोध मुझे तब हुआ, जब मैंने रेलवे स्टेशन पर दो आदमियों को चलती हुई रेल से उतरते हुए देखा। रेल छूट चुकी थी। इन दोनों में से एक आदमी रेल के डिब्बे से भक्क से कूदा और बुरी तरह गिर गया। हाथ-पैर तो नहीं टूटे, लेकिन चोट काफी आई। दूसरा आदमी भी कूदा और उसी कम्पार्टमेन्ट से कूदा, लेकिन भक्क से नहीं। जमीन पर पैर टिकते ही वह थोड़ी देर के लिए चलती हुई रेल की दिशा में ही दौड़ता रहा। यह आदमी गिरा नहीं, इसलिए चोट लगने का सवाल ही नहीं था। यह आदमी इसलिए नहीं गिरा, क्योंकि इसने रेल की गति के साथ अपनी गति का सामंजस्य बैठा लिया था, तालमेल बैठा लिया। पहले वाला आदमी इस नियम को नहीं समझ पाया, और उसने गति के साथ जड़ता का तालमेल बिठाने की मूर्खता की। नतीजे में चोट खा बैठा।
चलती रेल से उतरते समय हममें से ज्यादातर लोग उस पहले आदमी जैसी मूर्खता तो नहीं करते, लेकिन रोजाना की जिन्दगी में ऐसी गलतियां करने से बाज नहीं आते। उदाहरण के तौर पर यह धरती घूम रही है, हमारे शरीर की कोशिकाएं हर पल बदल रही हैं, लगभग पच्चीस साल की उम्र तक हम अपने जीवन की प्राथमिकतायें भी बदलते रहे हैं, पहले पढ़कर कुछ बनना, फिर कुछ करना आदि-आदि। लेकिन जब एक बार कुछ करने में लग गये, कमाने में लग गये, तो इसके बाद हमने खुद को बदलना बंद कर दिया। कमाना ही हमारी प्राथमिकता बन गई। यानी कि हमने खुद को जड़ बना लिया। अब बताइये कि ऐसे में हम गिरेंगे नहीं तो भला क्या होगा। ज्यादातर लोगों के साथ यही तो रहा है, क्योंकि इन ज्यादातर लोगों ने अपनी प्राथमिकताओं को बदलकर बलदती हुई परिस्थितियों से तालमेल बैठाना बंद कर दिया है।
नया साल आ गया है। पुराने के साथ नये का तालमेल बैठाने से बचने में ही समझदारी है। मेरे प्रिय पाठकों, नया वर्ष आप सबके लिय नयामय हो।