हमारे लोग धैर्य के महत्त्व को, इसके जादुई करिश्मे को अच्छे से जानते थे। वे प्रकृति के इस सिद्धान्त से अपने जीवन के सिद्धान्त निकालते थे कि जो कुछ भी होता है, वह समय के अनुकुल ही होता है। गीदड़ की जल्दबाजी में कभी बेर नहीं पकते। और यदि गीदड़ जल्दबाजी करेगा, तो निश्चित रूप से किसी न किसी के हाथों मारा जायेगा।
आपने महसूस किया होगा कि जैसे ही हमारा मन धैर्य की नींव पर टिक जाता है, वैसे ही उसका भटकाव खत्म हो जाता है। जाहिर है कि हम जो अपना आन्तरिक संतुल खोते हैं, वह इसलिए खोते हैं, क्योंकि हमारा मन भटक जाता है।
हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि हमारे धैर्य का सीधा संबंध न केवल हृदय और मन से ही होता है, बल्कि हमारी चेतना से भी होता है। आपने महसूस किया होगा कि यदि आप हड़बड़ी में पढ़ाई करते हैं, तो चीज़ें अच्छी तरह समझ में नहीं आतीं। आपका अनुभव रहा होगा कि हड़बड़ी में किये गये काम अक्सर गड़बड़ा जाते हैं। धैर्य को खोने का अप्रत्यक्ष अर्थ तेज़ रफ्तार से देखना ही लगाया जाना चाहिए। यह वह तेज़ रफ्तार होती है, जिसके लायक हम नहीं होते। हमारी गति, हमारा शरीर हमारे मन, हमारा हृदय, हमारी चेतना और हमारी आत्मा, इन सभी का आपसी सन्तुलन गड़बड़ा जाता है और हम दौड़ते-दौड़ते गिर पड़ते हैं। मेरी बात मानें । मेरी बात यह है कि धैर्य रखें। हो सकता है कि क्वांटीटी की दृष्टि से, संख्या की दृष्टि से आप थोड़े पिछड़ जाएं। हाँलाकि मैं मानता हूँ कि ऐसा नहीं होगा। फिर भी चलिये एक बार मान लेते हैं कि आप संख्या की दृष्टि से थोड़े पिछड़ जायेंगे। लेकिन मेरी इस बात पर तनिक भी शक न करें कि गुणवत्ता की दृष्टि से आप हमेशा आगे रहेंगे। थोड़े समय के लिए तो संख्या की जय-जयकार हो जाती है, लेकिन यदि आपको यह जयजयकार लम्बे समय तक के लिए चाहिए, जीवन भर के लिए और यहाँ तक कि जीवन के बाद के लिए भी चाहिए, तो आपको गुणवत्ता के लिए काम करना चाहिए। और यह गुणवत्ता धैर्य के बिना नहीं आती