श्रीराम ने अपने न्यूनतम प्रतिरोध के सिद्धांत को एक विशाल कैनवास पर चित्रित किया है। इस विशाल कैनवास पर हम उन्हें अपने दायित्वों का पूरी तरह से निर्वाह करते हुए पाते हैं। राम को आप कहीं भी अपने दायित्वों से बचते हुए नहीं पायेंग, यहाँ तक कि दूसरों के लिये भी।
राम-रावण युद्ध चल रहा है। विभीषण राम के साथ है। रावण का क्रोधित होना स्वाभाविक था। रावण ने विभीषण के ऊपर एक प्रचंड शक्ति छोड़ी। इस भयानक शक्ति को आता देखकर राम ने सोचा कि यह मेरा वचन है कि मैं अपनी शरण में आये हुए दुखी व्यक्ति की रक्षा करूंगा। इसी को कार्यरूप देने के लिए श्रीराम ने विभीषण को पीछे कर लिया और सामने होकर उस शक्ति के आघात को स्वयं सह लिया-
तुरंत विभीषण पाछे मेला। सन्मुख राम सहेउ सोइ सेला।।
अद्भूत है राम का मन, एकदम विचित्र। रावण ने कोई छोटा-मोटा अपराध नहीं किया था राम के प्रति। मैंने सैकड़ों बार देखा है, और दूर गाँव से लेकर महानगर तक देखा है कि यदि कोई आदमी किसी की पत्नी या बहन को थोड़ा भी अपशब्द कह दे, छेड़खानी कर दे , तो वह आदमी मरने-मारने पर उतारु हो जाता है। रावण ने तो राम की पत्नी सीता का अपहरण किया था, और वह भी युद्ध करके नहीं, बल्कि छल करके। कैसे यह सब बर्दाश्त किया होगा राम ने। क्या-क्या अपशब्द तक नहीं कहे थे रावण ने राम के लिए। युद्ध तक में किसी तरह के छल-कपट करने से बाज नहीं आया था वह महापंडित रावण। इसके बावजूद देखिए कि जब राम के द्वारा रावण मारा जाता है, तो राम क्या करते हैं। भाई की मृत्यु से दुखी विभीषण को समझाने और धैर्य बँधाने के लिये वे भाई लक्ष्मण को विभीषण के पास भेजते हैं। और जब विभीषण राम में पास आते हैं, तब राम उससे कहते हैं कि ‘करहुं क्रिया परिहरि सब सोका ’ हे विभीषण, तुम सभी शोक त्यागकर रावण की अन्त्येष्टि-क्रिया करो। क्या बात है मेरे राम।
बड़ा ही विचित्र और भ्रम में डालने वाला संबंध है राम और रावण का। कहाँ तो रावण है कि राम के प्रति अंदर ही अंदर जला जा रहा है, भस्म हुआ जा रहा है, जबकि राम ने उसका कुछ नहीं बिगाड़ा है। दूसरी ओर राम हैं कि रावण के प्रति किसी तरह के क्रोध, द्वेष या शत्रुता का ऐसा भाव नहीं रखे हुए हैं, जैसा आमतौर पर सुनने, पढ़ने और देखने में आता है। हाँ, राम के मन में रावण के विरूद्ध शौर्य का भाव अवश्य है, क्योंकि उसे जीतकर सीता को बंधनमुक्त जो कराना है। राम ने शत्रु के प्रति शत्रुता के भाव की जगह शौर्य का भाव रखकर इस संबंध को एक नई परिभाषा दी है। शायद इसीलिए अपने घोर और भौतिक रूप से घृणित शत्रु की मृत्यु होने पर भी उसके भाई विभीषण से उसकी अन्त्योष्टि-क्रिया करने को कहते हैं। यह है राम का दायित्व बोध।
ब्लॉग में प्रस्तुत अंश डॉ. विजय अग्रवाल की जल्द ही आने वाली पुस्तक “आप भी बन सकते हैं राम” में से लिया गया है।