हमारे आदि पुरुष ‘मनु’ ने धर्म की परिभाषा दी है कि जो ‘‘धारण करने योग्य हो, वह धर्म होता है’’ क्या हम इस परिभाषा को नवरात्रि जैसे विशुद्ध धार्मिक विधान पर लागू कर सकते है? इसमें नौ राते आती हैं। इन दिनों माँ दुर्गा की आराधना की जाती है। व्रत रखा जाता है। यथासंभव पवित्र जीवन जीने की कोशिश की जाती है। तो इसमें धारण करने योग्य क्या है।
पूरी तरह धार्मिक निगाह से देखने पर तो ये सब निश्चित तौर पर धार्मिक कर्मकाण्ड के हिस्से ही लगते हैं। लेकिन ऐसा है नहीं। दरअसल, हमारे पूर्वजों ने जीवन से जुड़ी अपनी सभी वैज्ञानिक बातों को प्रतीकों और मिथकों के माध्यम से हमें बताया और इन सबसको ‘धर्म’ का नाम दिया, ताकि आम लोग इनका विधिवत तरीके से श्रद्धपूर्वक पालन कर सकें। तो आइए देखते हैं कि इस नवरात्रि का विज्ञान क्या है।
तो सबसे पहले बात करते हैं ‘नौ’ का। नौ ही क्यों? आठ या दस क्यों नहीं? इसके दो मुख्य काणर जान पड़ते हैं। पहली बात तो यह कि भारतीय दर्शन में 108 अंक अत्यंत पवित्र अंक माना जाता है। शायद इसका कारण यह हो कि योगियों ने सौरमार्ग को सत्ताइस बाराबर भागों में बाँटा है। जिन्हें नक्षत्र करते हैं। प्रत्येक नक्षत्र को चार बाराबर पदों में बाँटा है। इनका गुणनफल 108 होता है। इस प्रकार माला के 108 मनकों का जाप करके भक्त सौरमार्ग की परिक्रमा पूरी कर लेता है।
108 का जोड़ होता है एक+आठ = नौ। इस नौ के अंक की खूबी यह है कि इस अंक का किसी भी संख्या से गुण किया जाये, तो उनका जोड़ नौ आएका। 9*2=18, 1+8=9 । 15*9=135, 1+3+5=9। इस प्रकार नौ पूर्णता का प्रतिनिधित्व करता है। पूर्ण मौन है? मात्र ईश्वर पूर्ण है। ईश्वर को किसी से भी गुणा करो, परिणाम हमेशा ईश्वर ही रहता है। इसलिए नौ का अंक ईश्वर का प्रतिनिधितव करता है।
म्हान वैज्ञानिक आंइस्टीन का मानना था कि यह सम्पूर्ण जगत मूलतः ऊर्जा से बना हुआ है। पदार्थ ऊर्जा के ही संघटित रूप हैं पदार्थ को ऊर्जा में बदला जा सकता है, और ऊर्जा को पदार्थ में। हमारे यहाँ देवी को ऊर्जा के ही रूप में देखा गया है। देवी यानी कि रचनात्मकता से भरपूर वह शक्ति, जिसमें जन्म देने की क्षमता है, कुछ नया बनाने की क्षमता है। विश्व के आदिकाल में जब ब्रह्मा को इस संसार की चरना करने की इच्छा हुई, तो उन्हें नारी शक्ति का आह्वान करना पड़ा था। यही कारण है कि भारत ने विष्णु एवं शिव जैसे महाशक्तिशाली देवों के साथ अपनी पत्नियों का विधान किया, ताकि ऊर्जा अपनी सम्पूर्णता को प्राप्त कर सके।
नवरात्रि के नौ दिनों को तीन-तीन दिनों के तीन भागों में बाँटा गया है। प्रथम तीन दिनों में माँ दुर्गा की आराधना होती है। माँ दूर्गा ने महिषासुर का विनाश किया था। इस प्रकार ये तीन हमें हमारे अंदर की आसुरी प्रवृत्तियों को समाप्त करने का संदेश देते हैं। आसुरी प्रवृत्तियां क्या है? घोर स्वार्थ, हिंसा वृत्ति, क्रोध, बुराइयां, अपवित्रतायें तथा दुर्भावनाओं को आसुरी प्रवृत्तियां माना जाता है। वस्तुतः वे भावना और विचार जो नकारात्मक हों और ध्वंसात्मक हो, इस श्रेणी में आती हैं। ऊर्जा के रूप में माँ दुर्गा की आराधना हम इन निम्न वृत्तियों से युक्त होने का प्रयास करते हैं।
बीच के तीन दिन लक्ष्मी देवी की पूजा-आर्चना के दिन होते हैं। लक्ष्मी जी को धन की देवी माना गया है, और इस धन में आध्यात्मिक धन भी शामिल है क्योंकि इसी आध्यात्मिक धन को पाकर हम ‘धन्य’ होते हैं। इस धन की प्राप्ति तभी संभव है, जब हम अपने अंदर की बुराइयों को बाहर कराके इसके लिए जगह बना लेते है। इस प्रकार लक्ष्मी की आराधना द्वाराा हम स्वय को भौतिक एवं आध्यात्मिक सम्पत्ति के योग्य बनाने की साधना करते है।
अंतिम तीन दिन ज्ञान की देवी सरस्वती को समप्रित हैं। ये मुलतः विवेक की देवी है। विवेक का अर्थ होता है- सही एवं गलत का निर्णय लेने की ज्ञान पूर्ण दृष्टि का होना। विवेक के अभाव में धन एवं शक्ति अहंकारी हो जाते हैं। माँ सरस्वती की आराधना हमें विवेक का प्रकाश प्रदान करके अपनी सम्पत्ति का समुचित उपयोग करके एक संतुलित जीवन जीने के लिए प्रेरित करती हैं।
इस प्रकार नवरात्रि में आराधित इन दिनों देवियों की ऊर्जा हमारे भौतिक एवं आध्यात्मिक जीवन को सम्पर्णता प्रदान करती है। वैसे ही इस प्रत्वी पर ऐसा कौन व्यक्ति है, जो शक्ति नहीं चाहता, ऊर्जा नहीं चाहता?
देवी के रूप में हमारे यहाँ माँ गायत्री का नाम सबसे पहले आता है। उनकी आराधना के रूप में ‘ऊँ भूभुर्वः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यए भर्गो देवस्य धीमहि धीयो यो नः प्रचोदयात्’ मंत्र का जाप करना अत्यंत लोकप्रिय है। यहाँ भी मूलतः मातृ शक्ति के रूप में ऊर्जा का ही आह्वान किया गय है। ऊर्जा के इस आह्वान के केन्द्र में ‘सूर्य’ है। और सूर्या का भंडार है, जो विवेक प्रदान करता है। इस प्रकार नवरात्रि का पर्व हमारे लिए स्वयं को धो-पोंछकर नवीन ऊर्जा को धारण करने योग्य बनाने का एक धार्मिक किन्तु अत्यंत वैज्ञानिक उपक्रम है। इस अवसर पर रखे जाने वाले उपवास का यही उद्देश्य है।
Note: This article was published in the National Edition Of Dainik Jagran Newspaper.