बहुत लोगों से पूछा मैंने, और उनसे खरीदकर लाया भी, लेकिन वैसा नीबू नहीं ला पाया, जैसा कि वह चाहता था। दरअसल हमारे यहाँ के लॉन में एक बड़ा सा गमला रखा हुआ है, जिसमें नीबू का एक पेड़नुमा पौधा या कह लीजिये कि पौधानुमा पेड़ लगा हुआ है। उसमें साल भर में पाँच-सात नीबू लग जाते हैं। ये सारे नीबू बेटे के लिए सुरक्षित रहते हैं, क्योंकि इसके फल उसे अदभुत लगते हैं। वह नीबुओं का शौकीन है, जो बहुत अच्छी बात है, और चाहता है कि उसके लिए वैसे ही नीबू लाये जायें। पिछले तीन सालों से लगातार कोशिश करते रहने के बावजूद मैं आज तक इसमें सफल नहीं हो पाया हूँ। ‘पापा, कुछ भी कहो, उस जैसी बात नहीं है।’ मैं उससे यह सुनता हूँ, और हर बार अपने को हारा हुआ समझकर निराश हो जाता हूँ।
फिर भी मैंने हथियार नहीं डाले होते, अंत तक मैं जीतने की कोशिश करता ही रहता, यदि उस दिन मैंने उसे माली से बात करते हुए सुना नहीं होता। वह कह रहा था, “भईया, क्या आपको पता हैं कि यह नीबू मैंने लगाया था। एक दिन मैंने नीबू का एक बीज बस ऐसे ही जमीन में गाड़ दिया। देखा कि कुछ दिनों में ही वहाँ कुछ निकल आया है। जल्दी ही समझ में आ गया कि अरे, यह तो नीबू का पौधा है। फिर मैंने इस खाली पड़े गमले में उसे लगा दिया। हांलाकि मम्मी कह रही थीं कि घर में नीबू का पेड़ नहीं होना चाहिए, लेकिन मैं नहीं माना। मैंने इसको रोजाना थोड़-थोड़ा बढ़ते हुये देखा है। मैं इसे पानी देने लगा, इसकी निंदाई-गुड़ाई करने लगा। एक दिन मैंने देखा कि इसमें छोटे-छोटे सफेद फूल आ गये हैं। उस दिन तो मेरी खुशी का बस पूछिए ही नहीं। मैं रोजाना उन फूलों को देखता। उनमें से कुछ फूल तो झड़ गये, लेकिन कुछ धीर-धीरे हरे हो गये। ये बड़े होने लगे, गोल-गोल से। फिर ये पकने लगे। मैंने सबसे कह दिया था कि इन नीबूओं को कोई नहीं तोड़ेगा। इन्हें मैं ही तोड़ता हूँ। भईया, इन नीबूओं का तो स्वाद ही कुछ अलग है।”
अब यह निर्णय मेरे प्रिय पाठकों को करना है कि स्वाद कहाँ है, नीबूओं में है, या कि कहीं और।