सच तो यह है कि विश्वामित्र के साथ राम का जाना एक प्रकार से वन गमन ही था, फर्क केवल इतना था कि यह लघु था और इस वन गमन में कोई नारी पात्र नहीं थी, न तो वन भेजने के मामले में (कैकेयी) और न ही साथ जाने के मामले में (सीता)। दशरथ तो विश्वामित्र जी के साथ भी भेजना नहीं चाहते थे। लेकिन थोड़े दिनों की बात सोचकर, साथ ही विश्वामित्र से थोड़ा डरकर उन्होंने ज्यादा आनाकानी किए बिना ही गषि की माँग को स्वीकार कर लिया।
यह जानना कम रोमांचक नहीं होगा कि राम का चौदह वर्ष का वनवास मूलतः इस लघु वन गमन का ही एक बृहद संस्करण था। विश्वामित्र के साथ वन में जाकर राम ने तीन मुख्य कामों को अंजाम दिया था। जाते ही पहला काम तो उन्होंने यह किया कि ताड़का और सुबाहू जैसे उन राक्षसों का अंत कर दिया, जो साधु-संतों की साधना और यज्ञ के मार्ग की बाधा बने हुए थे। दूसरे कार्य के रूप में उन्होंने अपने चरण के स्पर्श से उस अहिल्या का उद्धार किया, जो अपने पति गषि गौतम के श्राप के कारण पत्थर की बन गई थीं और राम का तीसरा महत्वपूर्ण काम रहा इस लघु वन गमन के दौरान सीता से विवाह करना। वे लक्ष्मण के साथ वन को गए थे, लेकिन जब लौटे तो सीता भी उनके साथ थी। हालाँकि साथ में लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला तथा भरत और शत्रुघ्न की पत्नियाँ भी थीं, लेकिन यहाँ केवल सीता का उल्लेख विशेष रूप से इसलिए किया जा रहा है, क्योंकि स्वयंवर मूलतः सीता के लिए रचा गया था और धनुषभंग करने के कारण राम सीता को पाने के अधिकारी थे। उनके तीनों अन्य भाईयों का विवाह तो ‘अरेंज’ के विधान के अन्तर्गत हुआ था।
रोचक बात यह है कि बाद में अपने चौदह वर्ष के वनवास के दौरान राम ने लघु वनगमन के इन तीनों मुख्य कार्यों को बड़े और व्यापक स्तर पर संपादित किया है। उन्होंने रावण, मारीच तथा कबंध जैसे न जाने कितने राक्षसों का वध करके गषि-मुनियों को निश्चिन्त किया। केवट, शबरी, जटायू जैसे भक्तों के साथ-साथ अनेक तपस्वी एवं मुनियों को अपने दर्शन से संतुष्ट कर उन्हें अपना परमपद प्रदान किया। तीसरे कार्य के रूप में जो कार्य वहाँ उन्होंने शिव का धनुष तोड़कर संपन्न किया था, वही कार्य यहाँ उन्होंने रावण का वध करके किया, यानी कि सीता को प्राप्त करने का कार्य और इस दौरान भी ये तीनों पात्र रहे- राम, सीता और लक्ष्मण।
ब्लॉग में प्रस्तुत अंश डॉ. विजय अग्रवाल की जल्द ही आने वाली पुस्तक “आप भी बन सकते हैं राम” में से लिया गया है।