Dr. Vijay Agrawal

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भगवान-एक जादूगर

krishna342x360भगवान यानी कि सच्ची-मुच्ची का एक जादूगर, एक ऐसा जादूगर, जो कुछ भी ऐसा कर सकता है, जैसा कि आमतौर पर होता नहीं है। उसकी डिक्शनरी में ‘असंम्भव’ नामक शब्द का अस्तित्व ही नहीं है। जब कभी मैं भगवान की इस जादूगर वाले चरित्र को लेकर भगवान कृष्ण के बारे में सोचता हूँ, तो असमंजस में पड़ जाता हूँ। मुझे मेरे इन प्रश्नों के उत्तर कृष्ण से नहीं मिल पाते कि “तुमने अपनी समस्याओं के निवारण के लिए अपनी इस जादूगरी वाली कला का इस्तेमाल क्यों नहीं किया। तुम तो भगवान थे। फेर देते दुर्योधन की बुद्धि, और दे देते उसे इतनी सुबुद्धि कि वह दे देता पाण्डवो को पाँच गाँव। फेर देते बुद्धि दु:शासन कि वह मना कर देता कि मैं द्रोपदी का चीरहरण नहीं करूंगा। या फिर तुम इतना साहस ही दे देते भीष्म और द्रोण को कृष्ण कि वे अन्याय के खिलाफ कम से कम बुदबुदाये तो होते। चलो छोड़ो दूसरों की बात। तुमने अपने ही वंश के लोगों की बुद्धि को फेरकर उन्हें बचा लिया होता नष्ट होने से। लेकिन नहीं कर सके तुम यह सब कुछ भी कृष्ण। तो फिर बताओ कि कैसे मैं तुम्हें भगवान मानूं। यह बात अलग है कि फिर भी मैं तुम्हें भगवान ही मानता हूँ।”
मेरी शिकायत कृष्ण की समझ में आई नहीं, क्योंकि उन्होंने इसके बारे में अब तक कुछ सोचा नहीं था। लेकिन थे वे अद्भूत चिन्तनशील व्यक्ति। उन्होंने कहा, “वत्स, तुम मुझे गलत रूप में मत समझों। याद रखो कि इस धरती पर, इस ब्रह्याण्ड में जो कोई भी है, चाहे वह जड़ हो या चेतन, प्रकृति के नियमों से परे नहीं है, मैं भी नहीं। जिस गुण को, कर्म को तुम चमत्कार समझकर मुझ पर आरोपित करना चाह रहे हो, यदि वह प्रकृति से सामथ्र्य से परे है, तो समझ लो कि मेरे और तुम्हारे सामथ्र्य से भी परे है।LordKrishna लेकिन हाँ, यह जरूर है कि मैंने अपने अनुभव और चैतरफा संघर्षों से अपने सामथ्र्य का इतना अधिक विस्तार जरूर कर लिया है कि मनुष्य की वह क्षमता भी तुम्हें जादू की तरह लगने लगती है। जबकि जादू की तरह कुछ होता नहीं है। यह तो तुम्हारा मतिभ्रम है, या फिर तुम्हारा दृष्टिभ्रम। इन दोनों भ्रमों को केवल समझा-बुझाकर ही दूर किया जा सकता है, बुद्धि को फेरकर नहीं। इसलिए तो मैंने युद्ध की भूमि तक में अर्जुन को समझाने का ही तो काम किया है, जिसे तुम गीता कहते हो। मैं इसे गाइड कहता हूँ, जीवन की गाइड। समझने के सिवाय कोई अन्य उपाय ही नहीं है वत्स। हाँ, मैं समझा सकूं, इसके लिए मुझे योग्य शिष्य चाहिए, जो अर्जुन था, अन्य नहीं। क्या तुम मेरे शिष्य बनने को तैयार हो? यदि हो, तो वह जादू मैं तुम्हारे साथ भी कर सकता हूँ।”

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