मित्रों, मेरी सलाह मानिये और अपनी जिन्दगी में सुनने को ज्यादा महत्व देना शुरू कर दीजिये। आप देखेंगे कि कैसे ज्ञान के स्तर पर, एकाग्रता के स्तर पर कम्युनिकेशन स्किल के स्तर पर और कुल-मिलाकर यह कि आपके अपने व्यक्तित्व के स्तर पर कितने अधिक सकारात्मक परिवर्तन होने शुरू हो जायेंगे। और यदि आपने अपने स्टूडेंट लाइफ में यह आदत डाल ली, तो कमाल ही हो जायेगा। कमाल केवल इसलिये नहीं होगा कि आपके पास जानकारियों का खजाना इकट्ठा हो जायेगा, बल्कि कमाल इसलिये भी होगा, क्योंकि अब आप जो बोलेंगे, वह उसी तरह से सटीक बोलेंगे, जैसे कि बॉलर जब बॉलिंग करता है, तो उसका एकमात्र लक्ष्य होता है-स्टम्प को उखाड़ देना। वह गेंद फेंके चाहे कहीं भी, लेकिन वह फेंकता इस स्टाइल से है कि गेंद घुम-फिरकर स्टम्प की ओर ही आये और जाहिर है कि यदि आप ऐसा करेंगे, तो आप विजेता बन जायेंगे।
दरअसल सुनने की कला कहीं न कहीं सामने वाले का विश्वास जीतने की भी कला होती है। यदि आप सामने वाले की बात को ध्यान से सुन रहे हैं और उसे यह लग रहा है कि आप उसे ध्यान से सुन रहे हैं, तो निश्चित रूप से वह आप पर विश्वास करने लगेगा। वह यह मान लेगा कि आप उसकी बातों को गम्भीरता से ले रहे हैं। जाहिर है कि उसकी बात को सुनने के बाद बोलने की बारी आपकी आयेगी। अब जब आप बोलेंगे, तो वह भी आपकी बात को उतनी ही गम्भीरता से लेगा, जितनी गम्भीरता से आपने उसकी बातों को लिया था। लेकिन यहाँ मामला बराबरी का नहीं है। इस अनजाने लेन-देन में आप इसलिये फायदे में रहेंगे, क्योंकि आपने उसकी बातों को ध्यान से सुनकर उसके दिल और दिमाग में अपने लिये एक विश्वास की भूमिका तैयार कर ली है। यह भूमिका आपको अतिरिक्त फायदा दिलायेगी। यह कुछ ऐसा कमाल करेगी कि सामने वाला न चाहते हुये भी आपकी बहुत सी बातों से सहमत हो जायेगा। यदि कुछ बातों से सहमत नहीं हो रहा है, तो वह अपनी असहमति को बहुत तेजी और गुस्से के साथ व्यक्त न करके तुलनात्मक रूप में कम विरोध के साथ पेश करेगा। तो कुल-मिलाकर यही तो है कम्युनिकेशन स्किल का वह अंतिम नतीजा, जिसके लिये आप इस कला को सीखना चाहते हैं।