Dr. Vijay Agrawal

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एक ड्रायवर

“सर, कैसी लगी आपको यह। अच्छी लगी न। मैंने कहा था न कि यह आपको अच्छी लगेगी। अब मैं इसे हमेशा अपनी गाड़ी में ही रखता हूँ। जब भी कोई सवारी इसमें बैठती हैं, मैं उसे यह थमा देता हूँ कि साहब, आप इसे पलट लीजिये। रास्ता भी कट जायेगा, मजा भी आयेगा और सबसे बड़ी बात तो यह कि कितना कुछ जान जायेंगे आप ज़िंदगी के बारे में। सर, एक बार तो जब मैं किसी को चंडीगढ़ लेकर गया था, तब तो मैं उनसे इसे पूरी की पूरी पढ़वाकर माना था। है न सर यह अच्छी बात।” अभी रात के साढे ग्यारह बज रहे थे, और दिल्ली की ठिठुरती ठंड में मैं नये एयरपोर्ट टर्मिनल थ्री से पंजाबी बाग जा रहा था। आँखें नींद से भारी हो रही थीं। सुबह चार बजे उठकर कार से दो घंटे का सफर फिर से करना था। इसलिए इस ड्रायवर की बातें बिल्कुल भी अच्छी नहीं लग रही थीं। रणवीर नामक यह 26 वर्षीय नौजवान ड्रायवर, मुझे इस किताब को पढ़ाने के लिए इतने जोश में था कि वह कार के अंदर की लाइट जलाकर गाड़ी ड्राइव कर रहा था। उसके उत्साह की लंबे समय तक उपेक्षा कर पाना मेरे लिए मुश्किल हो रहा था। इसलिए मैंने ड्राइविंग सीट के पीछे लटकी हुई थैली से किताब निकाल लेना ही ठीक समझा। किताब पर करीने से जिल्द चढ़ी हुई थी। “सर, पहले इसे मैंने पढ़ी। फिर मैंने अपनी वाइफ को पढ़वाई। इसके बाद मैंने अपने ससुर तक को नहीं छोड़ा। वे बड़े खुश हुये। बस, उसी दिन से मैंने फैसला कर लिया कि अब से जो भी सवारी इसमें बैठेगी, उसे मैं इसे जरुर पढ़वाऊंगा। अब तो सर, इसके कारण कई सवारी मेरी थोड़ी इज्जत भी करने लगे हैं। उन्हें लगता है कि यह कोई एैरा-गैरा ड्रायवर नहीं है। इज्जत तो सबको ही अच्छी लगती है सर। है कि नहीं।” मुझे झपकी आ गई थी। इसके चुप होते ही मैं चौंक कर उठा, और अनायास ही बोल पड़ा, “हाँ। तीर गलती से निशाने पर लगा था। मुझे जो बात सबसे अच्छी लगी थी, वह यह कि वह ड्रायवर किताबों का इतना बड़ा फैन था। अब मैंने किताब को खोला और उसे देखते ही मेरी आँखों की नींद छू-मंतर हो गई। मुझे नहीं लगता कि किसी भी लेखक को इससे बड़ा कोई अन्य एवार्ड मिल सकता है, जो रणवीर दे रहा था। साथ ही यह भी कि वह छोटा सा दिखाई देने वाला एक बड़ा काम भी कर रहा था।

“सर, कैसी लगी आपको यह। अच्छी लगी न। मैंने कहा था न कि यह आपको अच्छी लगेगी। अब मैं इसे हमेशा अपनी गाड़ी में ही रखता हूँ। जब भी कोई सवारी इसमें बैठती हैं, मैं उसे यह थमा देता हूँ कि साहब, आप इसे पलट लीजिये। रास्ता भी कट जायेगा, मजा भी आयेगा और सबसे बड़ी बात तो यह कि कितना कुछ जान जायेंगे आप ज़िंदगी के बारे में। सर, एक बार तो जब मैं किसी को चंडीगढ़ लेकर गया था, तब तो मैं उनसे इसे पूरी की पूरी पढ़वाकर माना था। है न सर यह अच्छी बात।” अभी रात के साढे ग्यारह बज रहे थे, और दिल्ली की ठिठुरती ठंड में मैं नये एयरपोर्ट टर्मिनल थ्री से पंजाबी बाग जा रहा था। आँखें नींद से भारी हो रही थीं। सुबह चार बजे उठकर कार से दो घंटे का सफर फिर से करना था। इसलिए इस ड्रायवर की बातें बिल्कुल भी अच्छी नहीं लग रही थीं। रणवीर नामक यह 26 वर्षीय नौजवान ड्रायवर, मुझे इस किताब को पढ़ाने के लिए इतने जोश में था कि वह कार के अंदर की लाइट जलाकर गाड़ी ड्राइव कर रहा था। उसके उत्साह की लंबे समय तक उपेक्षा कर पाना मेरे लिए मुश्किल हो रहा था। इसलिए मैंने ड्राइविंग सीट के पीछे लटकी हुई थैली से किताब निकाल लेना ही ठीक समझा। किताब पर करीने से जिल्द चढ़ी हुई थी। “सर, पहले इसे मैंने पढ़ी। फिर मैंने अपनी वाइफ को पढ़वाई। इसके बाद मैंने अपने ससुर तक को नहीं छोड़ा। वे बड़े खुश हुये। बस, उसी दिन से मैंने फैसला कर लिया कि अब से जो भी सवारी इसमें बैठेगी, उसे मैं इसे जरुर पढ़वाऊंगा। अब तो सर, इसके कारण कई सवारी मेरी थोड़ी इज्जत भी करने लगे हैं। उन्हें लगता है कि यह कोई एैरा-गैरा ड्रायवर नहीं है। इज्जत तो सबको ही अच्छी लगती है सर। है कि नहीं।” मुझे झपकी आ गई थी। इसके चुप होते ही मैं चौंक कर उठा, और अनायास ही बोल पड़ा, “हाँ। तीर गलती से निशाने पर लगा था। मुझे जो बात सबसे अच्छी लगी थी, वह यह कि वह ड्रायवर किताबों का इतना बड़ा फैन था। अब मैंने किताब को खोला और उसे देखते ही मेरी आँखों की नींद छू-मंतर हो गई। मुझे नहीं लगता कि किसी भी लेखक को इससे बड़ा कोई अन्य एवार्ड मिल सकता है, जो रणवीर दे रहा था। साथ ही यह भी कि वह छोटा सा दिखाई देने वाला एक बड़ा काम भी कर रहा था।

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