Dr. Vijay Agrawal

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ऊर्जामय है यह जगत

आप अभी, जी हाँ अभी तुरंत अपनी दोनों हथेलियों को तेज-तेज रगड़िये, और बताइये कि क्या हुआ। आपकी हथेलियों में गर्मी आ गई होगी। अब मेरा प्रष्न यह है कि यह गर्मी, जिसने आपकी ठंडी-ठंडी हथेलियों को कुनकुनेपन में बदल दिया, वह क्या कहीं बाहर से आई? आपका उत्तर होगा, ‘नहीं’ वह बाहर से नहीं आई है। “तो फिर कहाँ से आई? अन्दर से ही न। जब वह अंदर पहले से ही मौजूद थी, तो फिर वह आपकी हथेलियों को हमेषा इसी तरह से गर्म क्यों नहीं रखती थी? आप जवाब देंगे, “हाँ, थी तो वह गर्मी अंदर ही, लेकिन जब मैंने अपनी दोनों हथेलियों को आपस में रगड़ा, तभी उसने मेरी हथेलियों को गर्म किया।”

मित्रों, मेरे प्रष्नों के सभी उत्तर एकदम आसान हैं नर्सरी कक्षा की तरह, इसलिए आपके उत्तर भी बहुत सीधे और सरल हैं, लेकिन कम महत्वपूर्ण कतई नहीं। बल्कि जिस प्रकार अक्षर-ज्ञान किसी भी भाषा की नींव होती है, ठीक इसी तरह ऊर्जा के बारे में इस सत्य को जानना जीवन की, सफलता की नींव है। यह सत्य है कि ऊर्जा हम सभी के अंदर मौजूद है। उस मौजूद ऊर्जा को सक्रिय करना पड़ता है, और यह सक्रियता आती है- गति से।

भारतीय दर्षन में ब्रहम् की जो अवधारणा है, यदि आप चाहें तो उसे फीजिक्स की एनर्जी की अवधारणा के समानांतर रखकर उसका अध्ययन कर सकते हैं। जिस प्रकार इस सम्पूर्ण जगत को ब्रह्नमा ने बनाया है, उसी प्रकार यह सम्पूर्ण संसार ऊर्जामय है। आइंस्टीन ने हमें यही बताया है कि सम्पूर्ण भौतिक एवं अभौतिक वस्तुयें अंततः ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती हैं। भारतीय दर्षन ने कहा कि ब्रहम कण-कण में मौजूद है। आज क्वाण्टम फीजिक्स अणु से भी सूक्ष्मतम कण तक में एनर्जी की मौजूदगी मानता है। यानी कि इस ब्रह्नमाण्ड का कर्ता-धर्ता, पालनकर्ता, तारणहार और यहाँ तक कि विनाष करने वाला तत्व ऊर्जा ही है। तो हे ऊर्जा देव, तुम्हें शत-षत प्रणाम। तभी तो हमारे वैदिक ऋषियों ने सबसे अधिक ऋचायें उषा देवी (सूर्य) की प्रार्थना में रचीं।

यहाँ गौर करने की बात यह भी है कि “सबमें ऊर्जा होती है” और “सब कुछ ऊर्जा है” एक ही बात नहीं हैं। दोनों में फर्क है, और काफी फर्क है। ‘ऊर्जा है’, यह ठीक है। लेकिन यह तब तक काम नहीं करती है, जब तक कि उसे जीवित न किया जाये। इसे एक्टीवेट करना पड़ता है, ठीक वैसे ही, जैसे कि आपने अपनी हथेलियों को रगड़कर किया था। एक पत्थर पड़ा हुआ है। यह ऊर्जा का सुप्त रूप है। लेकिन जब आप उसे फेंकते हैं, तो गति के मिलते ही उसके अंदर की ऊर्जा सक्रिय हो उठती है। जाहिर है कि गति से ऊर्जा जागृत होती है। यही कारण है कि हनुमान जी की मूर्तियों में अक्सर उनका एक पैर जमीन से थोड़ा ऊपर उठा हुआ दिखाया जाता है। यह उठा हुआ पाँव उनके निरंतर चलते रहने का प्रतीक है। ‘परी’ यानी कि भ्रमण। इसी से शब्द बना पराक्रम। जो भ्रमण करेगा, जो गतिषील रहेगा, वही पराक्रमी बनेगा। हनुमान पराक्रमी हैं, क्योंकि वे गतिषील है। सूर्य भी पराक्रमी है, और वह ऊर्जा का अनंत स्रोत है, क्योंकि वह लगातार भ्रमण करता रहता है। हम भी उतने ही पराक्रमी बन सकेंगे, जितनी गतिषीलता में रहेंगे। आप इस गतिषीलता को चलना न मानकर ‘सक्रियता’ मानें, तो बेहतर होगा।

अब यहाँ सवाल यह है कि हममें यह ऊर्जा आती कहाँ से है? इसका उत्तर इस प्रष्न के उत्तर में छिपा हुआ है कि एक कुएं में पानी आता कहाँ से है। कुआं केवल वर्षा के जल के भरोसे नहीं रहता। दरअसल उसकी अंदरुनी दीवारों पर असंख्यों छोटे-छोटे छेद होते हैं, जिनसे पानी झिरता रहता है लगातार। न तो ये छेद दिखाई देते हैं, और न ही झिरने वाला पानी ही। लेकिन कुएं में पानी आता रहता है।

हमारे साथ भी लगभग यही है। हजारों-लाखों स्रोत हैं ऊर्जा के आने के, जिन्हें हम मुख्यतः चार नामों में बाँटकर जान सकते हैं- शरीरिक ऊर्जा, मानसिक ऊर्जा, भावनात्मक ऊर्जा और आत्मिक ऊर्जा। इन चारों मुख्य स्रोतों से हम ऊर्जावान होते रहते हैं। लेकिन हममें से ज्यादातर लोगों का शारीरिक ऊर्जा पर तो ध्यान रहता है, शेष तीनों पर नहीं। सच यह है कि इन शेष तीनों पर ज्यादातर लोग यकीन ही नहीं कर पाते। जबकि सच्चाई यह है कि शरीर की ऊर्जा की तो एक सीमा होती, शेष तीनों की सीमायें क्रमषः बढ़ती चली जाती है। अंतिम चरण में पहुँचकर तो वह असीम ही हो जाती है। हम में से जो भी अपने इन चारों चैनलों का जितना ज्यादा इस्तेमाल कर पाता है, उसकी सफलता की ऊँचाई उतनी ही अधिक ऊँची होती जाती है। उदाहरण के तौर पर हम नये साल को अपनी मानसिक और भावनात्मक ऊर्जा का माध्यम बना सकते हैं। ‘मेरा एक साल बीत गया यूं ही’ यह सोच हमें भावनात्मक ऊर्जा प्रदान करती है तो यह विचार कि ‘इस साल को अब मैं यूं ही नहीं जाने दूँगा’ हमें मानसिक ऊर्जा देती है। क्या ऐसा नहीं है? करके देखिए, परिणाम सामने दिखाई देंगे। अंत में यही कि नये वर्ष का सूर्य आपकी नई एवं अनंत ऊर्जा का आधार बने। शुभकामनायें।

नोट- यह लेख सबसे पहले दैनिक-जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में प्रकाशित हो चुका है

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