आज का मेरा यह विषय आपको बहुत उटपटाँग ही नहीं बल्कि एकदम गलत भी लगेगा। गलत इसलिए लगेगा कि अभी तक तो आपको यही बताया जाता रहा है कि आप सफल कैसे होंगे। आखिर हर कोई सफल ही तो होना चहता है। मैं आपको बताने जा रहा हूँ कि असफल कैसे हुआ जाता है। भला यह भी कोई बात हुई कि असफल होना सीखें। लेकिन जी हाँ, थोड़ा धैर्य रखें। मुझ पर झुँझलायें नहीं। पहले मुझे अपनी बात कहने दें। इसके बाद आपका गुस्सा मेरे सर–माथे।
आप एक बात बतायें कि कौन सी बातें आपको याद रह पाती हैं? वे कौन से हल हैं, जो आपके ध्यान में मौजूद रह पाती हैं? उदाहरण के लिए आपके कमरे की दीवार पर राधा–कृष्ण का एक कैलेण्डर लटका हुआ है, और इसे लटके हुए ग्यारह महिने से भी अधिक हो गये हैं। यह कैलेण्डर आपके ध्यान में है। आपके ध्यान में है कि कृष्ण और राधा खड़े हैं। आपके ध्यान में है कि राधा का लहँगा हरे रंग का है। लेकिन क्या यह बात भी आपके ध्यान में है कि उनके लहँगे का डिज़ाइन क्या है? शायद यह नहीं होगा। यदि मेरी यह बात सही है, तो अब आपको थोड़ा समय यह सोचने में लगाना चाहिए कि ऐसा क्यों हुआ?
मैं बताता हूँ। बात बहुत सरल है। ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि आपने इस बात पर कभी ध्यान ही नहीं दिया कि राधा के लहंगे का डिजाइन कैसा है। जब ध्यान ही नहीं दिया, तो फिर ध्यान में रहेगा भला कैसे।
बस, यही केन्द्रीय भाव है मेरे इस कहने का कि असफल होना सीखें। दुनिया में अभी तक भी ऐसा व्यक्ति नहीं हुआ, फिर चाहे वे स्वयं भगवान कृष्ण क्यों न हों, जो असफल व्यक्ति नहीं हुआ हो। हर कोई असफल होता ही होता है। लेकिन सफल और असफल व्यक्ति में जो मूल अंतर होता है, वह इस बात का कि असफल व्यक्ति अपनी असफलता से कुछ नहीं सीखता। इसलिए वह अपनी असफलता को दुहराता रहता है। जबकि सफल व्यक्ति अपनी असफलता से यह सीख लेता है कि असफल होने से कैसे बचा जा सकता है। यह व्यक्ति अपनी असफलता पर ध्यान देता है।
अपनी असफलता पर ध्यान देने का मतलब ही होता है–अपने काम को बहुत ध्यान से करना। जब आप किसी काम को ध्यान से करेंगे, तभी तो आपके ध्यान में रहेगा कि आपने क्या–क्या किया था। बल्ब के आविष्कारक एडिसन से जब एक पत्रकार ने पूछा कि आपको अपने उन एक हजार प्रयोगों के बारे में क्या कहना है, जिनसे आप बल्ब बना नहीं पाये थे। एडिसन ने इसका बहुत सुन्दर उत्तर इन शब्दों में दिया था कि इससे मैं यह जान सका कि इन एक हजार तरीकों से बल्ब नहीं बनाया जा सकता।
जब आप कोई भी काम बहुत ध्यान से करते हैं, तो दो बातें होती हैं। एक तो यही कि उसमें असफल होने की आशंका कम हो जाती है। दूसरे यह कि यदि आप असफल हो भी गये, तो असफलता भी एक अच्छी असफलता बन जाती है। यदि आप बहुत अच्छा खेलकर हार जाते हैं, तो क्या आपकी प्रशंसा नहीं होती। अच्छा यह बताइये कि भगवान कृष्ण को आप सफल मानेंगे या असफल? आपका उत्तर चाहे जो भी हो, लेकिन हम उन्हें इसके बावजूद भगवान मानते हैं। क्यों? क्योंकि वे इस कला में माहिर थे कि असफल होना कैसे सीखा जाता है।