अमिताभ बच्चन, जी हाँ, उन्हीं एक्टर अमिताभ बच्चन जी से यह मेरी पहली मुलाकात नहीं थी। लेकिन इस मामले में यह पहली जरूर थी, कि इस बार मैं उनमें उनकी सफलता के सबसे बड़े रहस्य को पकड़ना चाहता था। उनके बारे में आपने बहुत कुछ पढ़ा होगा, देखा होगा, सुना भी होगा कि वे बहुत अनुशासित व्यक्ति हैं।टाइम का बहुत ध्यान रखते हैं। वे अपने डायरेक्टर के आदेशों और इच्छाओं का बहुत आदर करते हैं। वे अपने किरदार पर बहुत काम करते हैं। केबीसी की उनकी हाजिर-जवाबी और उनके तौर-तरीकों ने भारतीय जेहन में उनकी यह तस्वीर भी बैठा दी है कि वे बहुत ही संस्कारवान और गरिमापूर्ण व्यक्ति हैं, जो कि वे हैं। साहित्य यही काम तो करता है, और उनकी चेतना अभी भी अपने ‘बाबूजी’ हरिवंशराय बच्चन के साहित्यिक संस्कारों से ओतप्रोत है।
निश्चित रूप से जिन्दगी में कुछ भी बड़ा करने के लिये इन सबकी जरूरत होती है। मैंने भी अमिताभ के बारे में ये सारी बातें सुन रखी थीं। फिर भी मेरे दिगाम में एक कीड़ा हमेशा कुनमुनाता रहता था कि क्या यह सब होने से ही सब कुछ हो जायेगा? मैं अन्य बहुत से लोगों को जानता हूँ, जिनमें ये सारी चीजें हैं, जिनकी बातें हमने अमिताभ के संदर्भ में अभी की हैं। बल्कि कही न कही उनमें कुछ ज्यादा ही हैं। फिर भी वे अमिताभ क्यों नहीं हैं? मैं इसी की खोज में था, और मेरी यह खोज तब तक पूरी नहीं हो सकती थी, जब तक उनसे मेरी भेंट न हो जाये। सौभाग्य से यह संयोग तब बन गया, जब वे प्रकाश झा की फिल्म ‘आरक्षण’ की शूटिंग के लिए भोपाल आये हुए थे।
अपनी इस मुलाकात में पहली बार मैंने अमिताभ जी को ऊर्जा के एक पुंज के रूप में महसूस किया, एक ऐसी ऊर्जा के रूप में, जो अपनी उपस्थिति मात्र से आसपास के मरे हुये वातावरण में जीवन फूंक देने का माद्दा रखता है। उनके चलने, उनके देखने, उनके बोलने, उनके हाव-भाव और यहाँ तक कि उनके मौन से भी आप ऊर्जा की बहती हुई धारा का अनुभव कर सकते है। आखिर कहाँ से पाई उन्होंने यह ऊर्जा? फिलहाल मैं केवल इतना भर कहने की स्थिति में हूँ कि “कार्य के प्रति अपनी प्रतिबद्धता से उन्होंने यह ऊर्जा पाई है, जो उन्हें किसी एक बिन्दु पर केन्द्रीत कर देती है।” मेरी खोज पूरी हो चुकी थी।